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लक्षणों की पहचान से होता है निदान व उपचार : डा. आलोक मनदर्शन

-डोगरा रेजिमेंटल सेंटर मे मनो विकार जागरूकता पर हुआ व्याख्यान


अयोध्या। मूड डिसऑर्डर या मनोदशा विकार अथवा भावनात्मक विकार आदि नामो से सम्बोधित यह मनोरोग भावनात्मक संयम को दुष्प्रभावित करता है जिसमे लंबे समय तक भावनात्मक उतार-चढ़ाव होता है जिसमें उदासी,उन्माद, क्रोध और तनाव की अनुभूति होती है। इसके के दो प्रमुख प्रकार हैं।

पहला डिप्रेशन या अवसाद तथा दूसरा बाइपोलर डिसऑर्डर या द्विध्रुवी विकार। अवसाद में हताशा व उदासी के मनोभाव होते हैं पर द्विध्रुवी विकार में कुछ हफ्ते अवसाद या उदासी तथा फिर हफ्तों तक उन्माद की मनोदशा हावी हो जाती है।

मूड विकार का प्रमुख कारक मूड-स्टेबलाइज़र हार्मोन सेरोटोनिन व रिवॉर्ड-हार्मोन डोपामिन का असन्तुलन है। मादक द्रव्य व्यसन व मनोआघात उत्प्रेरक का कार्य करते है। मूड विकार के प्रमुख लक्षणो में अनिद्रा या अतिनिद्रा, भूख में कमी या वृद्धि, रुचि में कमी या बढ़ोत्तरी, खुशी का अभाव या अतिखुश, ऊर्जा में कमी या अति ऊर्जावान , निर्णय क्षमता में कमी या हवाई निर्णय लेना, आत्म-सम्मान में कमी या दम्भ भरना, अपराध बोध या शत्रुता बोध, सिरदर्द,पेट दर्द, चिड़चिड़ापन व आक्रामकता जैसे लक्षण प्रमुख होते हैं।

इन्ही लक्षणो के आधार पर मूड डिसऑर्डर का निदान तथा मनोउपचार होता है। संज्ञानात्मक-व्यवहार थेरेपी (सीबीटी) व मनोरसायन को संतुलित करने वाली दवाओं से स्वस्थ मनोदशा की पुनर्स्थापना हो जाती है। यह बातें डोगरा रेजिमेंटल सेंटर के अवध आडीटोरियम मे आयोजित मनो विकार जागरूकता व्याख्यान में डा. आलोक मनदर्शन ने कही। कार्यक्रम की अध्यक्षता लेफ्टिनेंट कर्नल रवींद्र कुमार तथा संयोजन मेजर यशवीर ने किया।

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