हताशा-मनोद्वंद का गीता-ज्ञान करता है अंत : डा. आलोक मनदर्शन

by Next Khabar Team
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-श्रीकृष्ण हैं मनोपरामर्श के इष्ट,गीता-सूक्ति है मनोउपचार-युक्ति

अयोध्या। मन की आसक्तियों व विकृतियों का निदानात्मक विश्लेषण व मनोउपचार की सबसे प्रभावी आधुनिक विधा संज्ञान व्यवहार-उपचार या कॉग्निटिव बिहैवियर थिरैपी – सीबीटी का आदि संदर्भ महाग्रंथ गीता मे उद्धरित है। व्यवहारिक जीवन के संघर्षो व परिस्थियों से उत्पन्न होने वाली मनोदशा का वर्णन व समाधान इस महाग्रंथ में समाहित है।

संज्ञान व्यवहार-मनोउपचार में सर्वप्रथम उन विचारों व भावनाओं का निरपेक्ष व सचेतन पहचान कराया जाता है, जो अर्धचेतन मन पर हावी होकर लोभ, मोह, क्रोध, ईर्ष्या जैसी वृत्ति बनकर अवसाद, उन्माद, शक-वहम, डर व भय जैसे मनोविकार का रूप ले सकते हैं । ठीक यही युक्ति या साइकोथिरैपी श्रीकृष्ण द्वारा एक मनोविश्लेषक व मनोउपचारक के रूप में निष्पादित की गयी जिससे मनोद्वन्द-ग्रसित अर्जुन के मन में स्वस्थ व सकारात्मक अंतर्दृष्टि का संचार हुआ ।

मनोचिकित्सा मे अंतर्दृष्टि का बहुत ही अहम रोल होता है, क्योंकि स्वस्थ अंतर्दृष्टि के अभाव में रुग्ण मनोवृत्तियों से उपजे असामान्य व जीवन- बाधक व्यवहार मे बदलाव लाना असंभव होता है। इस प्रकार आधुनिक संज्ञान व्यवहार- मनोउपचार या कॉग्निटिव बिहेवियर थिरैपी – सीबीटी की आदि युक्ति श्रीकृष्ण द्वारा प्रतिपादित की गयी जो कि गीताग्रंथ के श्लोक में परिलक्षित है।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व के जन-मनोस्वास्थ्य संदर्भित वार्ता में जिला चिकित्सालय के मनो परामर्शदाता डा आलोक मनदर्शन ने मनो-महामारी से जूझ रहे आधुनिक समाज में गीता की सूक्तियों को भावनात्मक रूप से आत्मसात कर व्यग्र व रुग्ण मनोदशा का परिमार्जन करने पर जोर दिया है।

 

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