भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में बिस्मिल और अशफ़ाक़ की भूमिका निर्विवाद रूप से हिन्दू-मुस्लिम एकता का अनुपम मिसाल : बृजेश कुमार
अयोध्या। मंडल कारागार में शहीद अशफाक उल्ला खाँ की 119 वीं जयंती के पूर्व संध्या पर सोमवार को शहीद स्थल पर दीप प्रज्वलन किया गया। समारोह पंडित राम प्रसाद बिस्मिल बलिदानी मेला व खेल महोत्सव आयोजन समिति गोरखपुर उत्तर प्रदेश एवं अखिल भारतीय क्रांतिकारी संघर्ष मोर्चा के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया था। क्रांतिकारी अशफ़ाक के बलिदान स्थली जेल पर दीपोत्सव व माल्यार्पण कार्यक्रम में जेल अधीक्षक बृजेश कुमार ने कहा कि भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में बिस्मिल और अशफ़ाक़ की भूमिका निर्विवाद रूप से हिन्दू-मुस्लिम एकता का अनुपम मिसाल है। अंग्रजो की गुलामी से मुक्ति हेतु देश में चल रहे आंदोलनों और क्रांतिकारी घटनाओं से प्रभावित अशफाक के मन में भी क्रांतिकारी भाव जागे और उसी समय मैनपुरी षड्यंत्र के मामले में शामिल रामप्रसाद बिस्मिल से मुलाकात हुई और वे भी क्रांति की दुनिया में शामिल हो गए। इसके बाद वे ऐतिहासिक काकोरी कांड में सहभागी रहे और पुलिस के हाथ भी नहीं आए।
अशफाक उल्ला खान के 119 वीं जयंती के अवसर पर दीपों की ज्योति प्रकाश उत्सव को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता प्रेरक अनिरूद्ध मिश्रा ने कहा कि फैज़ाबाद जेल परिसर में कहा कि जंग-ए-आज़ादी के प्रमुख क्रान्तिकारीयों में सुमार, काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले उर्दू भाषा के बेहतरीन शायर अशफ़ाक़ उल्ला ख़ाँ वारसी हसरतअपने पूरे जीवन काल में हमेशा हिन्दू-मुस्लिम एकता के पक्षधर रहे। अशफाक उल्ला खां को भारत के प्रसिद्ध अमर शहीद क्रांतिकारियों में से एक माना जाता है। वे उन वीरों में से एक थे, जिन्होंने देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। उनके पकड़े जाने के बाद जेल में उन्हें कई तरह की यातनाएं दी गई और सरकारी गवाह बनाने की भी कोशिश की गई। परंतु अशफाक ने इस प्रस्ताव को कभी मंजूर नहीं किया। आखिरकार 19 दिसम्बर, 1927 को अशफाक उल्ला खां को फैजाबाद जेल में फांसी दे दी गई। इस घटना ने आजादी की लड़ाई में हिन्दू-मुस्लिम एकता को और भी अधिक मजबूत कर दिया।शहीद अश्फाक ‘हसरत’ की कुछ हसरतें…कुछ आरजू नहीं है, है आरजू तो यहरख दे कोई ज़रा सी खाके वतन कफ़न में..ए पुख्तकार उल्फत होशियार, डिग ना जाना,मराज आशकां है इस दार और रसन में…न कोई इंग्लिश है न कोई जर्मन,न कोई रशियन है न कोई तुर्की..मिटाने वाले हैं अपने हिंदी,जो आज हमको मिटा रहे हैं…।
विशिष्ट अतिथि क्रांतिकारी संघर्ष मोर्चा के प्रदेश प्रमुख उमेश राय उत्रावल प्रबंधक इंटर कालेज संतकबीरनगरने अपने उदबोधन में कहा कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान यौद्धा एवं भारत के सच्चे सपूत अशफाकउल्ला खान ने शहीद राम प्रसाद बिस्मिल के साथ अपना जीवन माँ भारती को समर्पित कर दिया था । दोनों अच्छे मित्र और उर्दू शायर भी थे, जहां राम प्रसाद का उपनाम (तखल्लुस) ‘बिस्मिल’ था, वहीँ अशफाक ‘वारसी’और बाद में ‘हसरत’ के उपनाम से लिखते थे। भारतीय आज़ादी में इन दोनों का त्याग और बलिदान वर्तमान की युवा पीढ़ियों के लिए धार्मिक एकता और सांप्रदायिक सौहार्द्र की अनुपम मिसाल है ! दोनों ही क्रांतिकारियों को एक ही तारीख,एक ही दिन और समय पर फांसी दी गई, केवल जेल अलग अलग थी अशफाक को फैजाबाद और बिस्मिल को गोरखपुर में फांसी दी गयी थी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए गुरुकृपा संस्थान के संस्थापक अध्यक्ष व सामाजिक कार्यकर्ता बृजेश राम त्रिपाठी ने अशफाक के जीवन के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि पठान परिवार में 22 अक्टूबर 1900 को जन्मे उत्तरप्रदेश के शाहजहांपुर स्थित शहीदगढ़ निवासी पिता मोहम्मद शफीक उल्ला खान और मां मजहूरुन्न्िाशां बेगम के सन्तान अशफाक का मन पढ़ाई में नहीं लगा बाल्यावस्था में उनकी रुचि तैराकी, घुड़सवारी, निशानेबाजी में अधिक थी। उन्हें कविताएं लिखने का काफी शौक था, जिसमें वे अपना उपनाम हसरत लिखा करते थे।अशफाक उल्ला खान के चित्र पर माल्यार्पण अतिथियों द्वारा किया गया, कार्यक्रम के प्रारंभ में सामूहिक वंदे मातरम एवं समापन राष्ट्रगान से किया गया।दीपांजलि व माल्यार्पण कार्यक्रम में कारागार अधीक्षक बृजेश कुमार, कुशीनगर से प्रतिनिधि वकील सिंह, गोरखपुर से प्रतिनिधि अवनीश मणि त्रिपाठी, संतकबीरनगर के प्रतिनिधि उमेश राय और महेश चंद्र दूबे, बस्ती हरैया से प्रतिनिधि प्रेरक अनिरुद्ध मिश्रा, गोंडा से प्रतिनिधि राकेश वर्मा, सेवा के सचिव ई. रवि तिवारी अयोध्या धाम,पत्रकार पवन पांडेय, , हिन्दी प्रचार प्रसार सेवा संस्थान के महामंत्री डॉ सम्राट अशोक मौर्य, प्रवीण सिंह एडवोकेट, सौरभ मिश्र की भागीदारी रही।