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वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ सृजनात्मक प्रयोग आवश्यक : प्रो. प्रतिभा गोयल

-अवध विवि में हुई विज्ञान संचार की कार्यशाला

अयोध्या। डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग, सिंधी अध्ययन केन्द्र तथा जागरण इंस्टीट्यूट मैनेजमेंट एण्ड मॉस कम्युनिकेशन, कानपुर के सहयोग से गुरूवार को संत कबीर सभागार में विज्ञान प्रसार, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार द्वारा ‘विज्ञान संचार भारतीय परिदृश्य एवं भविष्य‘ विषय पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. प्रतिभा गोयल ने पत्रकारिता के विद्यार्थियों से कहा कि विज्ञान संचार में वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ सृजनात्मक का प्रयोग करते हुए आम जनमानस के बीच संवाद होगा।

उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति का प्रारूप इसी दृष्टिकोण से निर्मित किया गया। कुलपति ने कहा कि जहां कला है वही विज्ञान है। विज्ञान के छोटे-छोटे तर्कों से आगे बढ़कर अविष्कार हुआ है। विज्ञान हमेशा रहा है लेकिन इसका विश्लेषण पर्याप्त नहीं हो पाया। भारत में स्वतत्रंता के बाद पर्याप्त अनाज नही था। आज भारत खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हुआ तो यह वैज्ञानिक प्रयोग का ही प्रतिफल है। कुलपति ने बताया कि आज की जरूरत है कि खेती मानव के लिए लाभकारी एवं सेहतमंद बने। कुलपति प्रो0 गोयल ने कहा कि आधुनिक शिक्षा नीति में मातृ भाषा को विशेष महत्व दिया गया है। ताकि भाषा संबंधी बाधा न बने और शिक्षा उभर कर सामने आये। जिज्ञासु मस्तिष्क सीखने के लिए तत्पर हो। कुलपति ने बताया कि 21वीं सदी में कौशल आधारित है।

इसमें मीडिया साक्षरता, सूचना साक्षरता, विज्ञान साक्षरता को कैसे जनजन तक ले जाए। इस पर ध्यान संचारकों को ध्यान देना आवश्यक है। कार्यशाला के मुख्य अतिथि विज्ञान प्रसार, नई दिल्ली के निदेशक डॉ0 नकुल पराशर ने कहा कि वैज्ञानिकता के साथ अपनी बात रखने की कोशिश नही करनी चाहिए। विज्ञान संचार को लोक प्रिय बनाना होगा। उन्होंने कहा कि कुछ पाठ्यक्रमों को विज्ञान से जोड़ा रहा है। यह पत्रकारिता के लिए एक नया आयाम देगा। विज्ञान संचार को निन्तर आगे बढ़ाना होगा। भारत के प्रधानमंत्री ने विज्ञान संचार को बढ़ावा दिया। यूजीसी के पाठ्यक्रमों में भी इस विद्या को अपनाया जा रहा है। इसमें रोजगार के नए साधन बनकर उभर रहे है। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय डिजीटल तकनीकी का फायदा उठाये और लघु फिल्मों का निर्माण करें। कार्यशाला में विशिष्ट अतिथि जागरण मैनेजमेंट ऑफ इंस्टीट्यूट कानपुर के निदेशक डॉ0 उपेंद्र पांडे ने कहा कि विज्ञान और कला दोनों ही एक दूसरे के पूरक है। नई शिक्षा नीति इन दोनों को समन्वय और समागम लेकर आई है। उन्होंने कहा कि विज्ञान को पढते हुए कला एवं संगीत सीखे। संचार को शुरू करना सीखें और छोटी-छोटी वैज्ञानिक तथ्यों से जुड़ी खबरों को बनाकर प्रस्तुत करें। उन्होंने छात्रों से कहा कि रोजमर्रा के जीवन पर लघु फिल्में का निर्माण करें। इससे सृजनात्मकता का बढावा मिलेगा एवं संवाद की भूमिका में रहे।

शिष्ट अतिथि विज्ञान प्रसार ओटीटी चैनल के प्रभारी कपिल त्रिपाठी ने कहा कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विज्ञान से संबंध नही है। सूचनाएं तथ्यों पर आधारित होनी चाहिए। दृष्टिकोण में परिवर्तन कर देश के निर्माण में सहायक बने। यहीं विज्ञान प्रसार का उद्देश्य है। आमलोगों की भाषा में कंटेंट तैयार किया जाए। क्योंकि आज सभी लोग मीडिया का उपयोग कर रहे है। उन्होंने कहा कि विज्ञान प्रसार को बढ़ावा देने के लिए चार हजार से अधिक विज्ञान से जुड़ी फिल्में बनी है। इसे आसानी से लोगों के बीच पहुॅचाना होगा। कार्यशाला में वरिष्ठ वैज्ञानिक व हेड साइंस फिल्म फेस्टिवल विज्ञान प्रसार के डॉ0 निमिष कपूर ने कहा कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाएं जानें के लिए विज्ञान प्रसार निरन्तर कार्य कर रहा है। चार सौ से अधिक पुस्तकें चौबीस भारतीय भाषाओं में प्रकाशित हो चुकी है।

देश की भाषाओं में ज्ञान को जनजन तक पहुॅचाना होगा। कार्यशाला के दौरान अतिथियों का स्वागत प्रो0 आरके सिंह, डॉ0 विजयेन्दु चतुर्वेदी, डॉ0 राजनरायण पाण्डेय व डॉ0 अनिल कुमार विश्वा द्वारा स्मृति चिन्ह एवं अंगवस्त्रम भेटकर किया गया। कार्यशाला का संचालन सिंधी अध्ययन केन्द्र के सलाहकार ज्ञान प्रकाश टेकचन्दानी ने किया। कार्यशाला के दौरान मुख्य नियंता प्रो0 अजय प्रताप सिंह, प्रो0 आरके तिवारी, प्रो0 नीलम पाठक, प्रो0 विनोद श्रीवास्तव, प्रो0 शैलेन्द्र कुमार, डॉ0 वंदन रंजन, डॉ0 नीलम यादव, डॉ0 शिवी श्रीवास्तव, डॉ0 अनिल कुमार, डॉ0 स्वाति सिंह, डॉ0 प्रत्याशा मिश्रा, डॉ0 अवध बिहारी सिंह, डॉ0 अनिल कुमार सिंह, गिरीशन्द्र पंत, सुभाष सिंह सहित बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं मौजूद रहे।

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