ऐसी फिज़ा बनाओ मेरे देशवासियों, हिंदू का घर जले तो मुसलमान रो पड़े

by Next Khabar Team
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-भारतीय सेना के और शहीदों के सम्मान में आयोजित आल इंडिया मुशायरा एवं कवि सम्मेलन में शायरों और कवियों ने बांधा समां, देशभक्ति से ओतप्रोत कलाम पर झूमें श्रोता

अयोध्या। नगर के फाब्स इंटर कॉलेज में भारतीय सेना और शहीदों के सम्मान में सोमवार रात आयोजित आल इंडिया मुशायरा एवं कवि सम्मेलन में शायरों और कवियों ने जहां शहीदों की याद में गज़लों और कविताओं से श्रोताओं की आंखें नम कर दीं वहीं भारतीय सेना के लिए रचनाओं से देशभक्ति की भी अलख जगाई। देर रात तक आयोजित मुशायरे और कवि सम्मेलन में श्रोताओं का जमावड़ा आयोजन की सफलता का कारण बना। गंगा जमुनी तहजीब के शहर में आयोजित मुशायरे में नामी शायरों और कवियों के अतिरिक्त स्थानीय ने भी अपने कलाम पेश किए। सबसे पहले शहीद लेफ्टिनेंट शशांक तिवारी, वीर अब्दुल हमीद और शहीद राजकुमार यादव को भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

आपरेशन सिंदूर का नेतृत्व करने वाली कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह के लिए भी रचनाएं प्रस्तुत कीं गई। अयोजक/संयोजक अली सईद खान “मशमूम” फैजाबादी ने सभी शायरों और कवियों का स्वागत करते हुए श्रोताओं को धन्यवाद ज्ञापित किया। मुशायरा एवम कवि सम्मेलन के सरपरस्त पूर्व मंत्री आनंद सेन यादव रहे मुख्य अतिथि पूर्व विधायक तेज नारायण पांडेय पवन रहे। अध्यक्षता मोहम्मद खलीक खान और निजामत अजहर इकबाल ने किया।

प्रख्यात शायर कुंवर जावेद कोटा ने पढ़ा – गीत अमर कर दे ऐसे अल्फाज़ कहां से लाऊं, सोंच रहा हूं तुम जैसी मुमताज़ कहां से लाऊं, दिल में तुम्हें पाने की तमन्ना संजो तो ली लेकिन, जो तुम्हें भाता हो वो मुमताज़ कहां से लाऊं। मशकूर ममनून कन्नौज ने पढ़ा जो हुआ वो भूल जाना चाहिए, अब कदम आगे बढ़ाना चाहिए, बेटियों की उम्र ढलने आ गई, आपको ऊंचा घराना चाहिए। अज्म शाकरी ने पढ़ा – जब हम अपने घर आए, आंख में आंसू भर आए, चिड़ियां रोकर कहतीं हैं बच्चों को पर क्यों आए। शोभनाथ फैजाबादी ने कहा इस कदर हालात बदतर हो गए, चलते चलते पांव पत्थर हो गए।

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अना देहलवी का कलाम श्रोताओं के सर चढ़ कर बोला, उन्होंने पढ़ा – दिल में है जो मेरे अरमान भी दे सकती हूं, वक्त पड़ जाए तो संतान भी दे सकती हूं, मुल्क से अपने मुझे इतनी मोहब्बत है अना, मैं तिरंगे के लिए अपनी जान भी दे सकती हूं। जसवंत अरोड़ा ने पढ़ा मेरे बच्चों ने सौगात दी है, एक अर्से बाद ही सही, आज लाहौर पर बात की है। प्रख्यात हास्य व्यंग्य कवि नरकंकाल ने पढ़ा ये कैसा इश्क है ये कैसा प्यार है, पड़वा के साथ पड़िया नहीं भैंस फरार है, इतनी धाकड़ मोहब्बत की रोड पर उतर आई, एक सौ बीस किलोमीटर प्रति रफ्तार है।

अतुल कुमार श्रीवास्तव अज ने पढ़ा बस एक पौधा लगाने से ये कमाल हुआ, अब अपने ख्वाब में सूखे शज़र नहीं आते। जौहर कानपुरी ने पढ़ा न तज़किरा चूड़ियों का होगा न फिक्र सस्ती मिलेगी तुमको, तुम्हारे जौहर की शायरी में वतन परस्ती मिलेगी तुमको। निकहत अमरोहवी ने पढ़ा – मुरझाए फूल तो गुलदान रो पड़े, एक शख्स मारा जाए तो संतान रो पड़े, ऐसी फिज़ा बनाओं मेरे देशवासियों, हिंदू का घर जले तो मुसलमान रो पढ़े।

मुशायरे में प्रख्यात शायरा शबीना अदीब ने पढ़ा वतन के किस्से तमाम लिखे हुए मिलेगें, हमारे पुरखों के काम लिखे हुए मिलेगे, कभी तिरंगे को दिल की आंखों से पढ़ कर देखो, सभी शहीदों के नाम लिखे हुए मिलेगे।

अजहर इकबाल ने पढ़ा जाने वो बच्चे कब किस रास्ते पर खो गए,जो बढ़े बूढ़ों को जाते थे नमन करते हुए, अली सईद खान मशमूम ने पढ़ा किसी के जलवों की जुनून तलाश करते हैं, गुलों में जुल्फ की खुशबु तलाश करते हैं, बस एक लम्हें में पागल बना गया जो मुझे, उसी की आंख का जादू तलाश करते हैं।

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