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क्रॉनिक डिस्ट्रेस बनता है डिप्रेशन : डॉ. आलोक मनदर्शन

-सेल्फ टाइम देता है मन को शुकुन

अयोध्या। किसी घटना विशेष या लाइफ इवेंट्स जैसे परिजन की मौत या अलगाव,बिजनेस या जॉब की क्षति, लव लाइफ ब्रेक अप जैसे मनोआघात से उपजे स्ट्रेस का प्रबन्धन न कर पाने पर स्ट्रेस नकारात्मक रूप ले कर डिस्ट्रेस या अवसाद बन सकता है, जिसमे बेचैनी, घबराहट, अनिद्रा आदि के साथ शारीरिक दुष्प्रभाव भी दिखाई पड़ते हैं।

लम्बे समय तक मेन्टल स्ट्रेस से न निकल पाने पर कार्टिसाल व एड्रेननिल स्ट्रेस हॉर्मोन बढ़ जाने से चिंता, घबराहट, आलस्य,अनमनापन,अनिद्रा,सरदर्द,पेट दर्द,तेज़ धड़कन, चिड़चिड़ापन,गुस्सा, नशा खोरी व आत्मघात या परघात की स्थिति भी पैदा हो सकती है । स्ट्रेस हार्मोन कोर्टिसाल का लेवल लम्बे समय बढ़े रहने पर इन्सुलिन रेजिस्टेंस बढ़ कर डायबिटीज का कारण तथा एड्रेननिल बढे रहने के रक्तवाहिनियो में सिकुड़न के कारण हाई ब्लड प्रेशर की दशा बन सकती है।

प्रोफेशनल व फैमिली दायित्यों के साथ ही रोज कुछ पल खुद के निकाल मन मुताबिक सामाजिक व मनोरंजक तथा रचनात्मक गतिविधियों को दिनचर्या में शामिल कर आठ घन्टे की गहरी नींद अवश्य लें। इसको सेल्फ टाइम कहा जाता है। सेल्फ टाइम से मस्तिष्क में मूड स्टेबलाइज़र हार्मोन सेरोटोनिन, रिवॉर्ड हार्मोन डोपामिन,साइकिक पेन रिलीवर हार्मोन एंडोर्फिन व लव हार्मोन ऑक्सीटोसिन का संचार होता है, जिससे दिमाग व शरीर स्वस्थ रहते हैँ। यह जीवनशैली माइंड- फ्रेंडली कहलाती है।

यह बातें कैम्ब्रियन स्कूल में आयोजित मनोजागरूकता कार्यशाला में डा आलोक मनदर्शन ने कही। कार्यशाला की अध्यक्षता प्रधानाचार्य जयंत चौधरी तथा धन्यवाद ज्ञापन कौसर फातिमा ने दिया।प्रतिभागी टीचर्स के संशयों व सवालो का समाधान भी किया गया।

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