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भागवत कथा कल्पवृक्ष सामान : पं.राधेश शास्त्री

गोसाईगंज। श्रीमद्भागवत कथा मनुष्य की सभी इच्छाओं को पूरा करती है। यह कल्पवृक्ष के समान है। इसके लिए मनुष्य को निर्मल भाव से कथा सुनने और सत्य के मार्ग पर चलना सिखाती है। उक्त उदगार अमसिन बाजार से सटे त्रिलोकपुर,दफ्फरपुर में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन कथा व्यास पं. राधेश शास्त्री जी ने कथा पंडाल में कृष्ण भक्तों को कथा का रसपान कराते हुए कहा।कथा व्यास ने कहाकि भागवत कथा ही साक्षात् कृष्ण है और जो कृष्ण है, वही साक्षात भागवत है। भागवत कथा भक्ति का मार्ग प्रशस्त करती है। भागवत की महिमा सुनाते हुए कहाकि राजा परीक्षित ने शमीक ऋषि के गले में मरा हुआ सांप पहनाया किंतु ऐसा करके उन्होंने अपने गले में तो मानो जीवित सांप ही पहन लिया।सर्प काल का स्वरूप है। सभी इंद्रिय-वृत्तियों को अंतर्मुख करके प्रभु में स्थिर हुआ ज्ञानी जीव के गले में सर्प पहनाने का अर्थ है।काल को मारना जितेंद्रिय योगी का काल स्वयं मरता है। अर्थात् काल उसे प्रभावित नहीं कर सकता। गलती करने के बाद क्षमा मांगना मनुष्य का गुण है, लेकिन जो दूसरे की गलती को बिना द्वेष के क्षमा कर दे, वो मनुष्य महात्मा होता है। जिसके जीवन में श्रीमद्भागवत की बूंद पड़ी, उसके हृदय में आनंद ही आनंद होता है। भागवत को आत्मसात करने से ही भारतीय संस्कृति की रक्षा हो सकती है। भगवान को कहीं खोजने की जरूरत नहीं, वह हम सबके हृदय में मौजूद हैं। अगर जरूरत है तो सिर्फ महसूस करने की। कथा में बड़ी संख्या में महिला-पुरूष कथा का रसपान किया।

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