अयोध्या। विश्व स्वास्थ्य संगठन को 31 दिसम्बर 2019 में चीन के हुबेई प्रान्त के वुहान शहर में अज्ञातकारण से फैल रहे न्यूमोनिया की जानकारी हुई , जिसकी पहचान बाद में कोरोना वायरस (SARS-CoV-2) के रूप में की गई अतः बीमारी को विषाणु और उत्पत्ति वर्ष के आधार पर कोविड 19 नाम दिया गया, अपनी अब तक यह विश्व के 190 से अधिक देशों में फैल गया, अतः वैश्विक महामारी घोषित कर दिया गया है।
क्या है कोरोना वायरस ?
जन्तुओ के सम्पर्क से मनुष्यों में (जूनोटिक) और मानव से मानव में फैलने वाले कोरोना विषाणु अविभाजित, आवरण युक्त, एक सूत्रीय आरएनए वायरस हैं। 1960 से अब तक इनके 6 प्रकार की पहचान हुई थी जिनमे से 4 (229E,OC43, NL63, HUK1) श्वसनतंत्र सम्बन्धी सामान्य रोग उत्पन्न करते हैं किंतु अन्य दो, सार्स कोव (SARS-CoV, 2003 में बिल्ली प्रजाति से मनुष्यों में) व मर्स कोव (MERS-CoV, 2012 में ऊंटों से मनुष्यों में) विषाणु मानव स्वास्थ्य के लिए चुनौती बन चुके हैं जिनके संक्रमण की मूल प्रवृत्ति नाक से फेफड़ों तक रोगोत्पादन हैं। वर्तमान में जिस नए वायरस की पहचान हुई है उसे सार्स कोव 2 या नॉवेल कोरोना वायरस कहा जाता है, इस प्रकार यह अपने वंश का 7 वां वायरस है।
एपिडेमियोलॉजी
मनुष्यों से मनुष्यों में तेजी से फैलने वाले सार्स कोव 2 विषाणु से अब तक विश्व के 39 लाख से अधिक लोग संक्रमित है, और 2.7लाख से अधिक मृत्यु हो चुकी है। भारत मे भी संक्रमण का आंकड़ा 59 हजार तक पहुंच गया है जिसमे 1800 से अधिक मृत्यु हो चुकी हैं।यद्यपि भारत मे रिकवरी दर अन्य देशों की अपेक्षा बेहतर लगभग 27 प्रतिशत से अधिक है।
कोरोना कितना घातक है ?
संक्रामकता की दृष्टि से नावेल कोरोना वायरस अन्य से दस गुना अधिक है जबकि इसकी प्राणघाती होने की दर पूर्व के सार्स (मृत्यु दर 11%), व मर्स (MERS -35%) से बहुत कम 1-4% ही है। अलग अलग देशों में यह आंकड़ा भिन्न है।
इन्क्यूबेशन पीरियड –
संक्रमण होने से लक्षणों के प्रकट होने के बीच का समय उदीयमान काल या इन्क्यूबेशन पीरियड कहलाता है। इसके लक्षणों की शुरुआत 2 से 12 -13 दिनों में हो जाती है ।
संक्रमण का प्रसारण कैसे होता है ?
- जानवरो से मनुष्य में – अधपके कच्चे मांसाहार से मनुष्य से मनुष्य में- संक्रमित व्यक्ति से व्यक्तिगत सम्पर्क (कॉन्टेक्ट) हाथ मिलाने, छुए गए या उपयोग किये गए उपकरणों, वस्तुओं , खाद्य पदार्थो, फल, सब्जियों आदि के प्रयोग, अथवा संक्रमित के शरीर द्रव्यों (एरोसॉल) जैसे छींक, थूक, उल्टी, खून, मल , मूत्र के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सम्पर्क के साधनों से।
- सुपर स्प्रेडर – ऐसे व्यक्ति जिनमे कोई लक्षण न हों और व्यक्तियों से सम्पर्क अधिक हो।
संक्रमण किसके लिए अधिक संभावित है ?
ऐसे संवेदनशील (susceptable) व्यक्ति जिनकी इम्युनिटी कम है या प्रौढ़ या बृद्ध व्यक्ति जो पहले ही लिवर, फेफड़े, हृदय, रक्तचाप, डायबिटीज, एड्स, की बीमारी से ग्रसित हैं और उपचार ले रहे हैं।
नवजात शिशु, संक्रमित व्यक्तियों का उपचार कर रहे स्वास्थ्य कर्मी, सुरक्षा कर्मी, सफाईकर्मी, मानसिक दबाव महसूस करने वाले व्यक्ति।
संक्रमण का प्रसारण रोकने का सरलतम उपाय
समाज मे सम्मुख व्यक्ति को संक्रमित मानते हुए उससे 2 मीटर की शारीरिक दूरी, व्यक्तिगत स्वच्छता के सभी उपाय।
पृथक्करण- समाज मे संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए क्वारंटाइन- अर्थात संदिग्ध व्यक्तियों का पृथक्करण, या आइसोलेशन -अर्थात पुष्ट हुए मरीज का अन्य से पृथक्करण, विधियां प्रयोग की जाती हैं।
संक्रमित अंग में कैसे नुकसान पहुँचाता है कोरोना ?
हिस्टोपैथोलॉजिकल अध्ययन में फेफड़ो में सूजन, खून की नलियों में जमाव, प्रोटीन युक्त गाढ़े स्राव , फाइब्रिन के अंश, बहुकेन्द्रीय बड़ी कोशिकाएं,और फेफड़ो की कोशिकाओं में बृद्धि देखी गयी है।यह परिवर्तन किसी भी संक्रमण के विरुद्ध शरीर की प्राकृतिक सुरक्षात्मक प्रतिक्रिया के कारण होते हैं।
विषाणु के प्रवेश के साथ ही श्वसनतंत्र की म्यूकोसा की सिलिएटेड सेल्स गति बढ़ाकर इसे बाहर करना चाहती हैं, किन्तु इसकी संरचना में बाहर की लिपिड खोल में धंसी प्रोटीन की घुंडी का संक्रमण प्रभावी बनाने में महत्वपूर्ण रोल हो सकता है जिससे यह शरीर की म्यूकोसा पर स्थित रिसेप्टर कोशिका से आसानी से चिपक सकता है।शरीर की प्रतिक्रिया के समय संक्रमित भाग में सइटोकाइन स्रावण बढ़ने से डब्ल्यूबीसी सहित कोशिकीय सक्रियता बढ़ती है, इससे कोशोकाओं के रेशों को भी नुकसान हो सकता है, और विषाणु को चिपकने का पर्याप्त अवसर व समय मिल जाता है, वह निरन्तर संख्या बृद्धि करता है , यदि संक्रमण श्वसन तंत्र के निचले हिस्से तक पहुच गया है तो स्रवण वहीं जमा होने से फेफड़ो के सिकुड़ने फैलने में दिक्कत हो सकती है जिससे सांस लेने में तकलीफ, सीने में भारीपन, दर्द, तेज बुखार, शरीर मे ऑक्सीजन की कमी होने लगती है।इस प्रकार कमजोर इम्युनिटी वाले लोगों में यह प्राणघातक हो सकता है।
कोविड 19 के लक्षण क्या हैं ?
नावेल कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्ति में तेज बुखार, सूखी खांसी, सांस लेने में तकलीफ व सीने में दर्द या भारीपन होने पर चिकित्सकीय पुष्टि करना आवश्यक माना जाता है। एक अध्ययन में बुखार (87.9%, 0-12 दिन में ),सूखी खांसी (67.7%, 0-16-19 दिन में ),थकान (38.1%), बलगम बनना(33.4%), सांस लेने में तकलीफ(18.6% , 0-7-19 दिन में), गले मे दर्द(13.9%) , सिरदर्द(13.6%), हड्डियों या मांसपेशियों में दर्द(14.8%), ठंडी(11.4), मितली वमन(5.0%),नाक बंद( 4.8%), डायरिया(3.7%), खूनी उल्टी(0.9%), कजंक्टिवल कंजेशन(0.8%), एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम(3%), सीने के सीटी सकैन में (86%) व एक्स रे में (59%) अपारदर्शी चिन्ह । बाद में कुछ मामलों में स्वाद व सुंगध की क्षमता में भी कमी मिली है । यद्यपि सूंघने की क्षमता में कमी अन्य विषाणुओं के संक्रमण से भी संभव है किन्तु सावधानी की दृष्टि से ,इसे वायरस के प्रमुख लक्षणों में सम्मिलित कर लिया गया। समय के साथ पैथोलोजिकल डेवलपमेंट होता रहता है जिससे न्यूमोनिया – यदि बच्चों में है तो सांस तेज चलती है, वयस्कों में सांस लेने में दिक्कत से ऑक्सीजन की कमी, (SpO2 90% से कम), इसके बाद विषाक्तता या सेप्सिस का लक्षण भी मिल सकता है, जिससे बच्चों में ताप व डब्ल्यूबीसी का बढ़ते जाना, वयस्को में रक्तचाप का कम होना शॉक की अवस्था का सूचक है।
रोग की जांच एवं पुष्टि –
बुखार के लिए थर्मल सकैनिंग संदिग्ध की सैम्पल जांच- जांच के लिए व्यक्ति के नासा मार्ग के पीछे नेजोफैरिंजियल, व मुखगुहा के पीछे ऑरोफरिंजियल से स्रावण का स्वाब टेस्ट करते हैं।
इसके अतिरिक्त मल मूत्र व रक्त के सैम्पल भी जांच के लिए लिए जाते हैं।
रक्त जांच –
IL-6, कार्डियक ट्रोपोनिन, बढ़े हुए, लिम्फोपेनिया नजर आते है।
खून की जांच में डब्ल्यूबीसी, न्यूट्रोफिल, लिम्फोसाइट्स, प्लेटलेट्स, TNF-अल्फा, इंटरफेरॉन गामा,IGM, IGG एंटीबॉडी की जांच का अध्ययन किया जाता है।
आरटी- पीसीआर (पोलीमेरेज चेन रिएक्शन) –
से आरएनए की पुष्टि की जाती है, जिसका परिणाम 6-48 घण्टों में मिल जाता है।
24 घण्टे के अंतर पर यही टेस्ट लगातार दो बार निगेटिव आने पर व्यक्ति को मुक्त किया जा सकता है। रैपिड टेस्ट – यह IGM, IGG एंटीबॉडी टेस्ट है, जिससे व्यक्ति में लक्षण होने या न होने की दशा में रक्त में उपस्थित एंटीबॉडी से संक्रमण होने का पता लग जाता है।
रेडियोलॉजिकल टेस्ट –
सीने का एक्स रे – निचले हिस्से में अपारदर्शी
सीने का सीटी सकैन- ग्लास ग्राउंड अपारदर्शिता
फेफड़ों के अल्ट्रासाउंड- डिफ्यूज्ड बी लाइन्स
पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट- फेफड़ों की श्वसन क्षमता।
रोग बढ़ने के संकेत
संक्रमण के बाद पहले सप्ताह में बुखार, सूखी खांसी, मितली, वमन, डायरिया
दूसरे सप्ताह के अन्त तक मरीज को सांस लेने में दिक्कत, सीने पर भारीपन, होने पर चिकित्सालय में एडमिट कराना आवश्यक हो सकता है जहां लक्षणों के अनुसार उसका सपोर्टिंग ट्रीटमेंट किया जा सकता है।
संक्रमित की गम्भीरता का मापन कैसे करते है?
संक्रमण की पहचान एवं पुष्टि के साथ उपचार के दृष्टिकोण से रोगियों को श्रेणियों में विभाजित किया जाता है 1 संदिग्ध – वे मरीज जिनमे पिछले दो हफ्ते में संक्रमित व्यक्ति, वस्तु, या क्षेत्र के सम्पर्क की जानकारी के बाद बुखार के साथ श्वसन तंत्र का कम से कम एक लक्षण खांसी, साँसलेने में तकलीफ, डायरिया, आदि का लक्षण पाया जाए। कोविड कन्फर्म केस – संदिग्ध व्यक्ति की लैबोरेटरी जांच के बाद पुष्टि होने पर रोगी को अस्पताल , वार्ड, या घर मे सुरक्षात्मक उपायों के साथ नियमित निगरानी में रखा जाता है। 3.सम्पर्कित – ये वह लोग होते हैं जो किसी पुष्ट हुए रोगी के सम्पर्क में आये हों, जैसे बिना सुरक्षात्मक उपाय के , सम्पर्कित, चिकित्सक, या स्वास्थ्य कर्मचारी,सहकर्मी, परिवार के लोग, सहयात्री । 4.अधिक खतरे वाले सम्पर्कित व्यक्ति – पुष्ट रोगियों के शरीर द्रव्यों जैसे छींक,खून, उल्टी, थूक, मल, मूत्र , प्रयोग किये कपड़े, या वस्तुओं के सम्पर्क में आने वाले। 5.कम खतरे वाले रोगी – जिनमे कुछ लक्षण हों किन्तु किसी संक्रमित व्यक्ति, वस्तु, या क्षेत्र की यात्रा अथवा सम्पर्क की पुष्टि न हो ।
जलरल मैनेजमेंट-
प्रचलित चिकित्सा पद्धति में कोविड 19 के इलाज के लिए कोई निश्चित विषाणु रोधी, प्रतिरोधक दवा, वैक्सीन, ज्ञात नहीं है।अतः जीवन रक्षक सपोर्टिंग मैनेजमेंट के साथ संक्रमण से बचाव के रक्षात्मक उपाय ही प्राथमिकता से व्यवहृत हैं जिससे शरीर को स्वतः स्वस्थ होने का समय व शक्ति मिलती रहे।
स्वच्छता के जरिये संक्रमण को फैलने से रोकने के उपाय –
हाथों को साबुन या एल्कोहल मिश्रित सेनेटाइजर से बार बार साफ करना, खांसी या छींक आने पर हाथों की कुहनी से मुह नाक ढकना, खांसी बुखार वाले व्यक्ति से दूरी बनाए रखना,अधपका भोजन, मांस, या एनिमल प्रोटीन से परहेज, ड्रॉपलेट से बचाव हेतु मेडिकल मास्क या गमछे का प्रयोग, चिकित्सकों व स्वास्थ्य कर्मियों के लिए पीपीई किट, प्रयोग किये जाने वाले सभी उपकरणों को बार बार सैनिटाइज करना, आदि सम्मिलित है।
संक्रमण को रोकने के अन्य घरेलू उपाय –
स्वस्थ जीवनशैली, नियमित दिनचर्या, नियमित योग, प्राणायाम, गुनगुने पेय- (सोंठ, दालचीनी, पिपली, लौंग, हल्दी गुड़ मिश्रित), इम्युनिटी बढ़ाने वाले विटामिन सी की प्रचुरता वाले फल जैसे संतरा, आंवला, नियमित धूप।
होम्योपैथिक मैनेजमेंट
होम्योपैथी रोग की डायग्नोसिस पर आधारित चिकित्सा पद्धति नहीं अपितु व्यक्ति के लक्षणों की औषधि की समानता पर आधारित चिकित्सा पद्धति है जो मूलतः आयुर्वेद की चरक संहिता पुस्तक के ज्वर निदान अध्याय के श्लोक संख्या 10, पृष्ठ संख्या 466 में वर्णित समः समं शमयति सिद्धांत पर विकसित और मर्दनम गुनवर्धनम सूत्र के अनुरूप निष्क्रिय पदार्थों के भी औषधीय गुणों को शक्तिवर्धित अनुप्रयोग करने में सक्षम हुई है अतः भारत मे विश्वसनीय और जनस्वीकार्य चिकित्सा पद्धति है। विज्ञान, दर्शन, मनोविज्ञान व तर्क की संयुक्त कसौटियों पर सिद्ध होने के बाद भी प्रयोगशाला की सीमाओं में न प्रमाणित कर पाने की अक्षमता को इसके अप्रमाणिक होने का दोषारोपण कर उपेक्षित किया जाता रहता है फिर भी इतिहास में उपलब्ध आंकड़ों से कॉलरा, स्पेनिश फ्लू, यलो फीवर, स्कारलेटफिवर, डिप्थीरिया, टायफॉयड आदि महामारी के समय होम्योपैथी की चयनित जिनस एपिडेमिकस औषधियों ने अपेक्षाकृत मृत्युदर में कमी लाकर मानव स्वास्थ्य की रक्षा में अपनी उपयोगिता बार बार सिद्ध की है। सम्भवतः इसीलिए 2014 में इबोला के संक्रमण काल मे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सुझाव दिया था कि ” बीमारियों में जहां कोई वैक्सीन या उपचार ज्ञात न हो तो अप्रमाणित कहे जाने वाले हानिरहित उपचार व बचाव के तरीको का हस्तक्षेप प्रभाविता के आधार पर स्वीकार किया जाना नियमन्तर्गत उचित है” । यह अप्रत्यक्ष रूप से होम्योपैथी की स्वीकार्यता को स्पष्ट करता है। डा हैनिमैन ने अपनी पुस्तक ऑरगेनन ऑफ मेडिसिन में महामारी विषय मे उपचार के लिए एफोरिज्म 241 में कहा है कि प्रत्येक महामारी सभी व्यक्तियों में कुछ विशिष्ट एवं सामान्य लक्षणों के साथ प्रदर्शित होती है अतः इन सामूहिक लक्षणों की समानता के आधार पर स्पेसिफिक औषधि का चयन व प्रयोग करना चाहिए जिसे उन्होंने जिनस एपिडेमिकस नाम दिया। भारत मे केंद्रीय होम्योपैथी अनुसन्धान परिषद द्वारा किये गए डेंगू और जापानीज इंसेफेलाइटिस के प्रसार के समय क्लिनिकल ट्रायल में होम्योपैथी औषधियों के प्रयोग से सकारात्मक परिणाम मिले और बिना किसी दुष्परिणाम के मृत्युदर में 15% तक कमी पाई गई।
वर्तमान कोविड 19 के संक्रमण से मानव स्वास्थ्य की रक्षा के लिए 28 जनवरी 2020 को सीसीआरएच में हुई बैठक में मंथन के बाद आयुष मंत्रालय को आर्सेनिक एल्ब 30 को कोविड 19 से बचाव के लिए प्रयोग करने की सलाह दी गयी।
आर्सेनिक एल्ब- व्यक्ति में बेचैनी, घबराहट, बीमारी का भय, बेहद कमजोरी, मृत्यु का भय, अकेलेपन से डर,बार बार थोड़ी थोड़ी प्यास, शेलश्मिक झिल्ली नाक , मुह, आंख,गला, पेट, मूत्राशय, आदि से स्राव, जलन, त्वचा पर अल्सर, एलर्जिक कणों से सांस फूलना, स्वच्छता , गन्ध का भ्रम,सूखी खांसी,आधी रात के बाद बढ़ना,न्यूमोनिया के लक्षण, तेज बुखार, ।
इस औषधि के साथ व्यक्तिगत रोगी के लक्षणों के आधार पर निम्न होम्योपैथी की दवाएं भी उपयोग की जा सकती हैं-
ब्रायोनिया -गर्म दिन के बाद ठंडी रात, श्लेष्मिक झिल्ली में सूखापन, तेज प्यास, सूखी खांसी, बुखार, गले मे दर्द, न्यूमोनिया, जरा सा भी हिलने डुलने पर दर्द। कैम्फोरा ऑफ – बेचैनी, कमजोरी, ठंडी के प्रति संवेदनशीलता, जुकाम,सिरदर्द, नाक बंद, सीने पर भारी पन, संसलेने में तकलीफ, तेज सूखी खांसी, सांस रुकती सी है, अनिद्रा, बुखार। कार्बोनियम ऑक्सीजनीसेटम – कोविड 19 के अधिकतर पैथॉलॉजिकल लक्षण इस औषधि से समानता रखते हैं। क्विल्लाया सपोनेरिया – शुरुआती अवस्था मे सर्दी, खांसी, जुकाम, बुखार, सरकॉलेक्टिक एसिड – एपिडेमिक इन्फ्लुएंजा में जब आर्सेनिक असरदायी न हो। फॉस्फोरस – सायं को गले मे दर्द, खराश, खांसी, सीने पर दबाव,सांस लेने में दर्द, न्यूमोनिया, बाई करवट लेट नहीं सकता, बुखार,। ट्यूबरकुलीनम-ठंडी से संवेदनशीलता, दम घुटना, सांस लेने में कष्ट, सूखी खांसी, ब्रांको न्यूमोनिया। इसे शुरुआत में या इन्टरकरेंट रेमेडी के रूप में प्रयोग कर सकते हैं। सोरिनम – निराश, ठीक होने की उम्मीद नही रखता, आत्मघाती विचार, शीत प्रवृत्ति, सांस लेने में कष्ट,सूखी खांसी। इंफ्लुएंजिनम- वायरल फीवर की सर्वप्रथम औषधि,शरीर मे दर्द, बुखार, जुकाम, नाक बंद ,खांसी।
इनके अतिरिक्त लक्षणों के अनुसार जेल्स, एकोनाइट, एंटीम टार्ट, जस्टिसिया, ब्लाटा, एस्पीडोस्पर्मा, अरेलिया आदि दवाओं का उपयोग कर सकते हैं।
कोविड 19 के भय से मानसिक समस्याएं –
रोग की संक्रामकता, कारण, भयावहता व उपचार की ठोस जानकारी न होने से व्यक्ति, परिवार व समाज सभी मे मानसिक स्वास्थ्य की संभावनाएं भी प्रबल होना स्वाभाविक है। एंग्जायटी – स्वास्थ्य की अनिश्चितता से कम्पन, धड़कन, बेचैनी, डिप्रेशन- मूड का बदलना, झुंझलाहट, गुस्सा, दुःखी होना, एकांतवास ,भूख, प्यास का बिगड़ जाना,जीवन के प्रति हताशा, ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर – शंकालु ,सन्देह,व काल्पनिक भय से बार बार हाथ धोना, सोंचने समझने की क्षमता में कमी महसूस करना,आदि चिंताजनक अवस्थाओं से सामान्य दिनचर्या में परिवर्तन आने से व्यक्ति का रक्तचाप, या डायबिटीज बढ़ सकता है, वाणी, भाषा, व्यवहार में उग्रता या अधीरता मिल सकती है। कई बार तो नकारात्मक विचार इतने प्रबल होने लगते है कि बीमारी का भय व्यक्ति को जीवन पर कलंक की तरह लगता है, अवसाद की इस अवस्था मे व आत्मघाती या हंता भी बन सकता है। इनसे बचाव का एक ही मार्ग है अन्यान्य मीडिया स्रोतों से मिल रही जानकारियों व सूचनाओं पर ध्यान देने की बजाय अपने चिकित्सक से परामर्श करें या प्रामाणिक स्रोतों से सही जानकारी प्राप्त करें। स्वजनों से सकारात्मक संवाद आपमे जीवन के प्रति विश्वास जगायेगा। स्वयं को गतिविधियों जैसे गायन, लेखन, सेवा कार्य, स्वच्छता, अध्ययन , चित्रकारी, आदि कार्यों में जोड़ें।
होम्योपैथी में मानसिक लक्षणों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है। उक्त सायकोटिक परिस्थितियां शरीर क्रिया को डिस्टर्ब कर लक्षण उत्पन्न करती है अतः इन्हें साइकोसोमैटिक डिसऑर्डर कहते हैं। जिनमे एंटी सोरिक रेमेडीज लाभदायक है। इस प्रकार होम्योपैथी वर्तमान परिदृश्य में भी समग्र स्वास्थ्य प्रदान कर सकती है।सरकार को उचित प्रबंधन एवं अनुसन्धान के संसाधन उपलब्ध करवा कर जनहित में स्वास्थ्य के समग्र उपायों पर एकसमान विचार करना चाहिए।