चौक व कसाबबाड़ा से हटाई गयी रोशनी, नहीं हुआ लंगर-ए-रसूल
अयोध्या। सुप्रीम कोर्ट के अयोध्या फैंसला के बाद मुस्लिमों के बड़े त्यौहार ईद मिलादुन्नवी पर भी ग्रहण लग गया। कदीमी जामा मस्जिद टाटशाह में अंजुमनों की बैठक में तमाम जद्दोजहद के बाद पैगम्बरे इस्लाम हजरत मोहम्मद साहब के जन्मदिन का जश्न सादगी से मनाने का निर्णय लिया गया।
टाटशाह मस्जिद में उलेमाओं और अंजुमनों के सदरों की बैठक देर शाम तक चलती रही अन्त में निर्णय लिया गया कि शान्ति व्यवस्था और अमन चैन कायम रखने के लिए इसबार बारावफात का सार्वजनिक जश्न न मनाया जाय। चौक घंटाघर और रिकाबगंज कसाबबाड़ा मार्ग पर की गयी रोशनी देर शाम उतार ली गयी साथ ही चौक में लगा टेंट भी उतार दिया गया। यही नहीं लंगरे रसूल के लिए जलाई गयी भट्ठियां भी बुझा दी गयीं जिसके कारण बिरयानी और मीट नहीं पकाये जा सके। अन्त में मीट को गरीब मुस्लिमों में कच्चा ही बांट दिया गया।
बारावफात रविवार को जामा मस्जिद टाटशाह हर साल निकाले जाने वाले जुलूस-ए-मोहम्मदी को भी न निकालने का फैंसला अंजुमनों द्वारा किया गया। गौरतलब है कि मोहम्मद साहब के जन्मदिन बारावफात को परम्परागत ढंग से जामा मस्जिद टाटशाह से सुबह 11 बजे जुलूस-ए-मोहम्मदी बरामद होती रही है और अपने निर्धारित मार्गों से नौव्हाख्वानी करती हुई अंजुमने वापस टाटशाह मस्जिद पहुंचकर खत्म हो जाती रही हैं। इसबार न तो लंगर-ए-रसूल हुआ और न ही जुलूस-ए-मोहम्मदी निकला।
मोहम्मद साहब की यौमे पैदाइश जश्न पूर्वक न मनाये जाने को लेकर आम मुसलमानों में आक्रोश देखा गया। मना जा रहा है कि अयोध्या फैंसला के चलते ही बारावफात सादगी से मनाने का निर्णय लिया गया। वैसे इस सम्बन्ध में समुदाय विशेष के लोग कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त कर रहे हैं।