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अवाम का सिनेमा : 15वां अयोध्या फिल्म समारोह के पोस्‍टर का हुआ विमोचन

– 27-28 नवंबर को अशफाक-बिस्मिल सभागार में होगा जमावड़ा

अयोध्‍या। अवाम का सिनेमा आयोजन समिति द्वारा बुधवार की दोपहर 15वां अयोध्‍या फिल्म फेस्टिवल के आधिकारिक पोस्‍टर का विमोचन आईटीआई सभागार में किया गया। अयोध्या फिल्म समारोह के संस्थापक शाह आलम ने कहा कि इस वर्ष आजादी का हीरक वर्ष चल रहा है इस लिहाज से यह आयोजन यादगार साबित होगा। सूबे में सबसे पहले शुरू हुए इस फिल्म समारोह के 15वें संस्करण के आयोजन से देश-विदेश के सरोकारी फिल्मकारों के बीच अयोध्या से स्वर्णिम खिड़की खुलेगी। राजकीय औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान में आयोजित होने वाले अयोध्‍या फिल्म फेस्टिवल के पोस्‍टर के विमोचन के दौरान विभिन्‍न विभागों के शिक्षक और कर्मचारियों के अलावा अवाम का सिनेमा के सदस्‍य भी मौजूद रहे। जिसमें प्रमुख रूप से अयोध्या मंडल के संयुक्त निदेशक डी.के. सिंह, आईटीआई प्रिंसपल इं. के.के. लाल, डॉ. सम्राट अशोक मौर्य, सूर्यकांत पांडेय, ओमप्रकाश सिंह, अनिल कुमार श्रीवास्तव, कश्यप कांत मिश्र, आशीष अग्रवाल, धर्मेंद्र कुमार, सूरज यादव, आचार्य नारायण मिश्र, शाह आलम, अंतरिक्ष श्रीवास्तव की मौजूदगी रही।

आयोजक मंडल ने बताया कि पोस्‍टर रिलीज होने के साथ ही समारोह की तैयारियां अब गति पकड़ ली है। आयोजन में देश विदेश से आने वाले सिनेमा और साहित्‍य जगत की हस्तियों के साथ ही फिल्मों का मेला भी अब सजने वाला है। जहां कला माध्यमों को समेटे विभिन्न आयोजन होंगे।

कुछ इस तरह शुरू हुआ सिलसिला

-आयोजक शाह आलम बताते हैं कि अवाम का सिनेमा के 16 वर्ष कुछ कम नहीं होते, इसके सफरनामे की शुरुआत 28 जनवरी 2006 को अयोध्या से हुई थी। तब डॉ. आरबी राम ने तीन सौ रुपये का आर्थिक सहयोग देकर क्रांतिवीरों की यादों को सहेजने की इस पहल का स्वागत किया था। आजादी आंदोलन के योद्धा और कानपुर बम एक्शन के नायक अनंत श्रीवास्तव के सुझाव पर बना इसका संविधान तो प्रसिद्ध और सरोकारी डिजाइनर अरमान अमरोही ने इसका लोगो बनाया। सोलह वर्षों में देश-दुनिया की बहुत सारी शख्सियतें इसकी गवाह बनीं, फिर भी वह दौर आसान नहीं था। बावजूद इसके अयोध्या से लेकर चाहे चंबल का बीहड़ हो, राजस्थान का थार मरुस्थल या फिर सुदूर कारगिल, अवाम का सिनेमा पुरजोर तरीके से अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए राजनीति, समाज सबकी सच्चाइयों को सरोकारी सिनेमा के जरिये समाने लाने की कोशिश में लगातार लगा हुआ है।

आयोजन इस तरह हुआ सफल

-16 वर्षों के सफर में देश भर में हुए सफल आयोजनों में देश सहित दुनियां के कई हिस्सों से सरोकारी हस्तियां अपने खर्चे से शामिल होकर हौसला बढ़ाती रही हैं। इसके इलावा क्रांतिकारियों से संबंधित दस्तावेज, फिल्म, डायरी, पत्र, तस्वीरें, तार, मुकदमे की फाइल आदि तमाम सामग्री लोगों से तोहफे में मिली है। गांव, कस्बों से लेकर, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों सहित अन्य शैक्षणिक संस्थानों ने जहां निशुल्क कार्यक्रम स्थल दिया है। विभिन्न सामाजिक संगठनों ने जमीनी स्तर पर जनसहभागिता बढ़ाकर हौसला बढ़ाया है, तो वहीं जन माध्यमों ने इसे नई पहचान दी है। आयोजन से जुड़े साथियों ने फेसबुक, ट्विटर, पत्र, ईमेल, नुक्कड़ मीटिंग, चर्चा करके आयोजन की सूचना समाज से साझा करते रहे हैं तो वहीं कई ने क्रांतिकारियों पर लगातार लिखकर जागरूकता बढ़ाई है। साथ ही वीडियो, फोटो, दस्तावेजीकरण और प्रकाशन में आर्थिक और श्रम सहयोग देकर इस विरासत को आगे बढ़ाया है। यही आयोजन की सबसे बड़ी सफलता है।

आयोजन के प्रतीक का इतिहास

-अयोध्‍या फिल्म फेस्टिवल में प्रतीक के तौर पर यहां के प्राचीन सिक्‍के का प्रयोग किया गया है जो पुरातन अवध के ही हिस्‍से में प्राप्‍त हुआ था। माना जाता है कि प्राचीन काल में जनपद गणतंत्र और राज्य भी होते थे, जो वैदिक काल के दौरान कांस्य और लौह अयस्क से काफी समृद्ध भी थे। भारत और विश्व के इतिहास में पहली बार सिक्कों का चलन यहीं शुरू किया। ये जनपद 1200 ईसा पूर्व और 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व के बीच अस्तित्व में रहे और भारतीय उपमहाद्वीप में फैले। इनमें कुल 56 राज्य और 16 महानजपदों में शामिल माने जाते हैं।

शायद भारत के सबसे पुराने ज्ञात सिक्कों में से कुछ यह सिक्‍के पहली बार आधुनिक उत्तर प्रदेश के नरहन शहर में पाए गए थे। शाक्य जनपद (जिसे वज्जि या लिच्छवी जनपद भी पूर्व में कहा जाता था) आधुनिक शहर गोरखपुर के उत्तर में भारत-नेपाल सीमा पर स्थित था। इसकी राजधानी कपिलवस्तु मानी जाती है। जहां से भगवान बुद्ध की जन्मस्थली लुम्बिनी, कपिलवस्तु से दस मील पूर्व में स्थित मानी गई है। राजगोर के अनुसार, बुद्ध के पिता शुद्धोधन शाक्यों के निर्वाचित अध्यक्ष थे। माना जाता है कि इनमें से कुछ सिक्के बुद्ध के जीवन काल के दौरान अच्छे से ढाले गए होंगे। भगवान बुद्ध को ‘शाक्यमुनि’ अर्थात शाक्यों का ऋषि भी कहा जाता था। राजगोर के अनुसार, शाक्य कालीन मुद्रा 100 रत्ती के बराबर तक होता था, जिसे शतमान कहा जाता था। शतमान आठ षण में विभाजित था, जबकि अयोध्या फिल्म फेस्टिवल के लोगो में दर्शाए गए सिक्के में पांच षण शामिल हैं।

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