-रावण के दशोमुख हैं व्यक्तित्व विकार के प्रतीक , व्यक्तित्व विकार हैं मनोरुग्णता का आधार
अयोध्या। दशानन रावण के दहन से बुराई पर अच्छाई की जीत-पर्व दशहरा की मनोसामाजिक प्रासंगिगता है। रावण के दशोमुख व्यक्तित्व-विकार या पर्सनालिटी-डिसऑर्डर के प्रतीक हैं । मॉडर्न मनोचिकित्सा मे भी दस व्यक्तित्व-विकार वर्गीकृत हैं । इनमे दंभी व्यक्तित्व विकार या नार्सिसिस्टिक व्यक्तित्व विकार, समाजघाती या एंटी सोशल व्यक्तिव विकार, झक्की या बार्डर लाइन व्यक्तित्व विकार, बनावटी या हिस्ट्रयानिक व्यक्तित्व विकार, ईर्ष्यालु या पैरानाइड व्यक्तिव विकार, विचित्र या सिज़ोयड व्यक्तित्व विकार, एकल या सिज़ोटाइपल व्यक्तित्व विकार,पलायन या अवॉयडेंट व्यक्तिव विकार, आश्रित या डिपेंडेंट व्यक्तित्व विकार व व्यग्रता या ऑब्सेसिव व्यक्तित्व विकार आतें है।
सरल शब्दों में ये सभी व्यक्तित्व विकार सर्वशक्तिमान या दंभ, असामाजिक,अनैतिक, अन्यायी, झक्की, क्रोधी आत्ममुग्धता, ईर्ष्यालु, वाले व्यक्तित्व का सम्मिश्रण है। इनमें सबसे खतरनाक व्यक्तित्व विकार आत्ममुग्धता या दंभी व्यक्तित्व विकार है जो रावण-व्यक्तित्व पर्याय होने के साथ ही, आधुनिक समाज में अल्प, मध्यम या गंभीर रूप मे समुचे विश्व में व्याप्त है जो समाजिक अशान्ति व विनाश के लिये जिम्मेदार है।
व्यक्तित्व विकार व्यक्ति की सोच,भावनाओं व व्यवहार को दुष्प्रभावित करता रहता है और मनोरोगों की की आधारशिला भी बनता है। व्यक्तिव विकार से ग्रसित लोगों की अंतर्दृष्टि शून्य होती है और वे अपने बनाये तर्को के आधार पर अपने व्यवहार व कृत्य को सही ठहरातें हैं जिसका खामियाज़ा स्वजन व समाज,देश व विश्व को भी भुगतना पडता है।
इस प्रकार दशहरा दंभी-विकार रूपी रावण के प्रति अंतर्दृष्टि विकसित करने तथा मर्यादापूर्ण व्यक्तित्व-सौदर्य को आत्मसात करने का पर्व है। दशहरा पूर्व-संध्या विशेष यह मनोविश्लेषण जिला चिकित्सालय के माइंड मेंटर डा आलोक मनदर्शन ने किया।