-लोक लज़्ज़ा व संकोच, मनोसलाह के अवरोध, चिंता घबराहट है मेन्टल स्ट्रेस की आहट
अयोध्या। मनोतनाव जनित अधिकांश समस्याओ का अज्ञानता व संकोच के कारण मनोविशेषज्ञ से सलाह न ले पाने की वजह से सटीक इलाज़ नही हो पाता है। बढ़ता मनोसन्ताप युवाओं में तेजी से बढ़ रहे मनोशारीरिक बीमारियों या साइकोसोमैटिक डिसऑर्डर का कारण भी बनता जा रहा है।
इनके लक्षण तो शारीरिक होते हैं, पर उसका मूल कारण मेन्टल स्ट्रेस या मनोतनाव होता है।पाचन क्रिया से लेकर हृदय की धड़कन तक शरीर की हर एक कार्यप्रणाली इससे दुष्प्रभावित होती है। मेन्टल स्ट्रेस से कार्टिसाल व एड्रेनिल हॉर्मोन बढ़ जाता है जिससे चिंता, घबराहट, एडिक्टिव इटिंग,आलस्य, मोटापा , अनिद्रा,हृदय की असामान्यत अनुभूति या कार्डियक न्यूरोसिस, पेट खराब रहना या गैस्ट्रिक न्यूरोसिस व नशे की घातक स्थिति पैदा हो सकती है। यह बातें अंतरराष्ट्रीय मनोजागरूकता सप्ताह कार्यक्रम के तहत सुंदरलाल राम कॉलेज ऑफ़ नर्सिंग अकबरपुर अंबेडकरनगर मे तनाव के मनोशारीरिक दुष्प्रभाव विषयक कार्यशाला में मुख्य वक्ता डा. आलोक मनदर्शन ने कही।
बचाव :
मन के प्रत्येक भाव पीड़ा, तनाव, सुख, आनन्द, भय,क्रोध, चिंता, द्वन्द व कुंठा आदि का सीधा प्रभाव शरीर पर पड़ता है। स्ट्रेस व एंग्जायटी एक हफ्ते से ज्यादा महसूस होने पर मनोपरामर्श अवश्य लें। स्वस्थ, मनोरंजक व रचनात्मक गतिविधियों तथा फल व सब्जियों का सेवन को बढ़ावा देते हुए योग व व्यायाम को दिनचर्या में शामिल कर आठ घन्टे की गहरी नींद अवश्य लें। इस जीवन शैली से मस्तिष्क में हैप्पी हार्मोन सेरोटोनिन व डोपामिन का संचार होगा।
कार्यशाला में प्रतिभागियों के संशय व सवालों का समाधान भी किया गया। कार्यशाला की अध्यक्षता डॉ० जयंती चौधरी व निर्देशन डॉ.उमेश चौधरी ने किया। संयोजन रविमणि चौधरी तथा संचालन प्रधानाचार्य डा. सुधीश एस.तथा आभार ज्ञापन ऋषि पाण्डेय ने व्यक्त किया।