संक्रमण के मानसिक भय न पालें, सकारात्मक सोंचे, बचाव के उपाय करें : डा. उपेन्द्रमणि त्रिपाठी
अयोध्या। “डा साहब सिर भारी रहता है नींद के बीच से जाग जाती हूँ फिर नींद नहीं आती, कुछ करने की हिम्मत नहीं होती, शरीर मे जगह जगह दर्द होता है, ब्लड प्रेशर भी सामान्य है अब तो टीवी भी कम देखती हूं दो दिन से” यह एक महिला मरीज का चिकित्सक से प्रश्न था। आरोग्य भारती द्वारा टेली कंसल्टेशन सेवा में चिकित्सको के पास ऐसी स्वास्थ्य सम्बन्धी जिज्ञासाएं आती हैं। इस विषय पर डा उपेन्द्रमणि त्रिपाठी ने कहा टीवी या मोबाइल पर संक्रमण से सम्बंधित सूचनाओं की अधिकता, सही व स्पष्ट जानकारी के अभाव में जो बीमार नहीं हैं उनमें रोगग्रस्त होने का अनावश्यक मानसिक भय बैठना ठीक नहीं है।मानसिक रूप से कमजोर होने पर संक्रमण से ज्यादा उसका भय भयावह हो सकता है। होम्योपैथी के दर्शन विज्ञान के अनुसार यह साइकोटिक प्रवृत्ति है जो बाद में शारीरिक क्रियाविधियों पर भी असर डालती है जिससे पाचन, उनिद्रा, कम भूख, कम प्यास, सुस्ती, शरीर मे इधर उधर दर्द की अनुभूति आदि लक्षण हो सकते हैं, जिन्हें सोमैटिक लक्षण कहते है। इस प्रकार दोनों मिलकर साइकोसोमैटिक डिसऑर्डर उत्पन्न कर सकते हैं। कुछ विशेष परिवर्तनों पर आपको अपने चिकित्सक से अवश्य बात करनी चाहिए जैसे यदि आपको या आपके परिवार में किसी सदस्य को मामूली बात पर भी बहुत ज्यादा अवसाद, तनाव और चिड़चिड़ापन आ जाए तो यह एन्जायटी डिसऑर्डर हो सकता है, या सामान्य गतिविधियों में दिलचस्पी खत्म होना, निराशा, आत्मसम्मान में कमी, भूख कम लगना, ऊर्जा कम होना, नींद में परिवर्तन और एकाग्रता में कमी डिप्रेसिव डिसऑर्डर की पहचान है, खाने-पीने, बात करने, नींद और जीवन की हर गतिविधि में समझौता करने की आदत को एडजस्टमेंट डिसऑर्डर कहते हैं,अथवा मानसिक रूप से किसी भी रोग से लडऩे के लिए खुद को कमजोर पाना, मनोरोगों के विरुद्ध क्षमताओं में कमी साइकॉलोजिकल इम्युनिटी में कमी लाती है इस कारण उसमे सही निर्णय लेने की क्षमता का अभाव, विचारों व व्यवहार में उन्मत्तता पागल पन के जैसे भाषा व्यवहार बढ़ जाये तो वह नकारात्मकता की परिधि में कुंठाग्रस्त हो आत्महत्या करने जैसे भी विचार या प्रयास कर सकता है।इन मनःस्थितियों के का शारीरिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है। मानसिक कमजोरी या बीमारी से डायबिटीज, ब्लडप्रेशर जैसे रोग या तो जन्म लेते हैं या और बढ़ जाते हैं जिन पर नियंत्रण आवश्यक है क्योंकि मानसिकता भी शारीरिक रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर करती है।
क्या करना चाहिए –
आपदा काल में सकारात्मक संकल्पों के साथ अपने लिए व समाज के लिए कुछ अच्छा कर सकने को तैयार होना चाहिए। सोचिए लोग इनदिनों एक दूसरे की मदद को आगे आ रहे हैं, सेवाभाव प्रदर्शित हो रहा है, मांसाहार, नशा, अपराध, नकारात्मक वृत्तियां, प्रकृति में प्रदूषण नियंत्रित हो रहा है। इतने लंबे समय मे बुरी आदतें छोड़ी जा सकती हैं, परिवार के साथ समय को संवाद बढ़ाकर, सहयोग व प्रेम भाव को बढ़ाए। एकल परिवार और संयुक्त परिवार की महत्ता को समझें, बुजुर्गों के अनुभव से सीखें,।जीवन मे अपनी आवश्यकताओं पर चिंतन कीजिये , तदनुरूप भविष्य में संसाधनों के भंडारण की बजाय जीवन को परिवार व समाज के लिए कैसे उपयोगी बना सकें ऐसे योगदान पर विचार करें नकारात्मक स्थितियों से बचने का एकमात्र उपाय है , किसी भी शंका को मन मे न पालें, अपने चिकित्सक से परामर्श कर उचित जानकारी प्राप्त करें और उन्ही की बात को सत्य मानें।
यह समझें कि जिन्हे क्वारंटाइन और आइसोलेशन में रखा गया है, वे ठीक हैं और जो संक्रमित हैं सरकार उनके समुचित इलाज की व्यवस्था दे रही है, लोग अस्पतालों से ठीक होकर भी आ रहे हैं। जीवन की संभावनाएं 96-98% तक है और मौत का आंकड़ा केवल तीन-चार प्रतिशत है।इसलिए डरने की बजाय बचाव के तरीके अपनाने और ठीक होने की सम्भावना पर अधिक विचार करना चाहिए। संक्रमण से बचाव के लिए सबसे सरल उपाय है उस कड़ी को तोड़ना जिससे उसके फैलने की संभावनाएं अधिक हैं,समाज मे व्यक्तिगत दूरी सर्वाधिक सुरक्षित उपाय है,।दूसरा किसी बाहरी व्यक्ति नाई,,दुकानदार,या वस्तु जैसे फल सब्जी, पैकिंग के डिब्बे आदि का सीधे संपर्क की बजाय घर आने पर अपने जूते चप्पल बाहर उतारें , गाड़ी व गाड़ी की चाबी पर एल्कोहल युक्त सैनेटेजर का छिड़काव करें, हाथ साबुन से धोएं , मास्क, व कपड़े पानी मे डाल दें, फल सब्जियां एक चम्मच नमक या सोडा मिले पानी की बाल्टी में 10 -20 मिनट डाल दें।
इस प्रकार बाहर से संक्रमण आपके घर नही आ पाएगा और आप सपरिवार सुरक्षित रहेंगे।