-कल्पना लोक में जीने का मनोरोग है सिज़ोफ्रेनिया
अयोध्या। डिजिटल मीडिया से न केवल अवसाद, बेचैनी,चिड़चिड़ापन, आक्रमकता,अनिद्राबढ़ रहें है बल्कि मनोबाध्यता विकार या ऑब्सेसिव डिसऑर्डर भी बढ़ रहा है जो युवाओ के मनोविदल या सिज़ोफ्रेनिक होने की आधारशिला भी बन सकता है।
स्क्रीन एक्सपोजर से फील गुड मनोरसायन डोपामाइन का स्राव बढ़ जाता है जिससे आनन्द व उत्तेजना तो बढ़ता ही है , साथ ही मन इसका तलबगार होता जाता है ।लत के चर्मोत्कर्ष पर पहुचने के बाद हमारे ब्रेन में डोपामिन की बाढ़ आ जाती है और मन अनिद्रा, बैचैनी, से घिरने लगता है।यह स्थिति घड़ी के पेण्डुलम के समान उत्तेजना तथा बेचैनी में झूलती है जिसे मनोबाध्यता विकार या ओ सी डी कहा जाता है जो आगे चलकर सिज़ोफ़्रेनिया या मनोविदलता में बदल सकता है ।सिजोफ्रेनिया आभासी दुनिया मे जीने का गम्भीर मनोरोग है और किशोर व युवा इसके हाई रिस्क ग्रुप में है। यह बातें विश्व सिज़ोफ्रेनिया दिवस 24 मई की पूर्व संध्या पर जिला चिकित्सालय में आयोजित कार्यशाला में बतायी गयीं।
ऑनलाइन गैंबलिंग, गेमिंग, डेटिंग, सेक्सटिंग जैसे माध्यम मनोलत पैदा करने वाले स्रोत हैं । डिजिटल फास्टिंग या डिजिटल उपवास ही इसका सम्यक उपचार व बचाव है। डिजिटल एक्सपोज़र को जितना ज्यादा हो सके गैप देना चाहिए और हो सके कुछ दिन या हफ्ते या महीने का ब्रेक भी देना चाहिये और अन्य मनोरंजन के पारम्परिक तौर तरीकों व सामाजिक मेलजोल व रचनात्मक क्रिया कलापों को भी बढ़ावा देने के साथ आठ घण्टे की गहरी नींद अवश्य लेनी चाहिये और डिजिटल एडिक्शन से न निकल पाने की दशा में मनोपरामर्श अवश्य ले। कार्यशाला को युवा मनोपरामर्शदाता डॉ आलोक मनदर्शन, वरिष्ट बाल व किशोर परामर्श दाता डॉ रुकुम केश व डॉ ए के वर्मा ने सम्बोधित किया।