-डिजिटल मीडिया बढ़ा रही डिप्रेशन व एंग्जायटी
-डोपामिन ड्रैग कर रहा मनोक़ैद
अयोध्या। डिजिटल मीडिया की बेतहासा बढ़ती लत से मनोस्वास्थ्य को नया खतरा पैदा हो रहा है जिसकी वजह से अवसाद, बेचैनी,चिड़चिड़ापन, आक्रमकता,अनिद्रा आदि तेजी से बढ़ रहें है जिसका मुख्य शिकार किशोर व युवा तो हैं ही,बच्चे व वयस्क भी अछूते नही रह गये है।
विश्व मनोस्वास्थ्य दिवस 10 अक्टूबर की पूर्व संध्या पर जिला चिकित्सालय के किशोर व युवा मनोपरामर्शदाता डॉ आलोक मनदर्शन ने वाल स्ट्रीट जर्नल की हालिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि डिजिटल मीडिया के अधिक स्क्रीन एक्सपोजर से हमारे ब्रेन में फील गुड मनोरसायन डोपामाइन का स्राव होने लगता है जिससे आनन्द व उत्तेजना का मनोसंचार होने लगता है।नतीजा यह होता है कि हमे जितना आनन्द मिलता जाता है हमारा मन उतना ही इसका तलबगार होता जाता है, जैसा कि परम्परागत नशे की लत में भी होता है। लत के चर्मोत्कर्ष पर पहुचने के बाद हमारे ब्रेन में उस समय डोपामिन की बाढ़ सी आ जाती है और फिर हम अनिद्रा, बैचैनी, कतुहल व अशांत मनोभाव से पूरी तरह घिर जाते है। इस तरह यह स्थिति घड़ी के पेण्डुलम के समान हो जाती है जिसमे एक तरफ आनन्द व उत्तेजना तथा दूसरी तरफ अवसाद व बेचैनी है। लगातार हफ़्तों या महीनों की यह स्थिति अवसाद, उन्माद, एंग्जायटी डिसऑर्डर, ओ सी डी,पैनिक एंग्जायटी , मादक द्रव्य व्यसन, अमर्यादित व अनैतिक व्यहार,सेक्सटिंग व कंपल्सिव गैम्बलिंग जैसे मनोविकारो का कारण साबित हो सकती है।
👉बचाव:
वैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म ने कोरोना काल मे एक ऐसा वैकल्पिक माध्यम प्रदान किया है जिससे कि पठन पाठन,शॉपिंग व अन्य आवश्यक सेवाओ की सुलभता बनी रही।पर इन आवश्यक सुविधाओ के साथ ही डिजिटल मीडिया की लत के भी रुझान तेजी से बढ़े है जिनमें ऑनलाइन गैंबलिंग, गेमिंग,सोशल मीडिया के अन्य मनोलत पैदा करने वाले स्रोत हैं । इतना ही नही, आनन्द की अनुभूति कराने वाले डोपामिन का स्तर कम होते ही मन इसे फिर पाने के लिये व्यग्र होता जाता है और हम वापस फिर उसी डिजिटल एक्सपोजर से वापस सुकून या आनन्द प्राप्त करने लगते है।
इस प्रकार मनोबाध्यता विकार या ओ सी डी के भी हम शिकार होने लगते हैं। डिजिटल फास्टिंग या डिजिटल उपवास ही इसका सम्यक उपचार व बचाव है जिसमें हमे डिजिटल एक्सपोज़र को जितना ज्यादा हो सके गैप देना चाहिए और हो सके कुछ दिन या हफ्ते या महीने का ब्रेक भी देना चाहिये और अन्य मनोरंजन के पारम्परिक तौर तरीकों व सामाजिक मेलजोल व रचनात्मक क्रिया कलापों को भी बढ़ावा देने के साथ आठ घण्टे की गहरी नींद अवश्य लेनी चाहिये और डिजिटल एडिक्शन से न निकल पाने की दशा में मनोपरामर्श अवश्य ले।