-लोक अदालत की मूल भावना में लोक कल्याण की भावना समाहित : जिला जज रणंजय कुमार वर्मा
अयोध्या। शनिवार को मॉं सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्जवलन के साथ वृहद राष्ट्रीय लोक अदालत का शुभारम्भ जनपद न्यायाधीश रणंजय कुमार वर्मा के द्वारा किया गया। मॉं सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्जवलन के समय राहुल कुमार कात्यायन, प्रधान न्यायाधीश, पारिवारिक न्यायालय, राजेन्द्र प्रसाद श्रीवास्तव-तृतीय, पीठासीन अधिकारी, कामर्शियल न्यायालय, अयोध्या, श्रीमती अल्पना सक्सेना, अपर प्रधान न्यायाधीश, पारिवारिक न्यायालय, अयोध्या एवं अपर जनपद न्यायाधीश/सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, अनिल कुमार वर्मा व नोडल अधिकारी राष्ट्रीय लोक अदालत नूरी अंसार अपर जनपद न्यायाधीश/विशेष न्यायाधीश पाक्सो एक्ट-द्वितीय व अन्य सम्मानित न्यायिक अधिकारीगण उपस्थित रहे।
इस अवसर पर जनपद न्यायाधीश रणंजय कुमार वर्मा जी ने कहा कि लोक अदालत की मूल भावना में लोक कल्याण की भावना समाहित है। सुलह समझौता के दौरान सभी का मान, सभी का सम्मान, सभी को न्याय मिले इसका ध्यान रखा जाता है। राष्ट्रीय लोक अदालत में दोनों पक्षों के हितों को ध्यान में रखकर आपसी सुलह-समझौते के माध्यम से वादों को निस्तारित कराया जाता है। इतिहास में दर्ज है कि सदियों पहले जब अदालतें नहीं हुआ करती थी तब दो पक्षों के आपसी मतभेद को सुलह-समझौता के माध्यम से समाज के गणमान्य व्यक्ति एक निर्धारित स्थल पर बैठकर दोनों पक्षों की बात सुनकर यह निर्णय लेते थे कि दोनों पक्षों का हित किसमें हैं। इसी को देखते हुए सुलह-समझौता कराते थे और समाज में इसके सार्थक परिणाम भी दिखाई पड़तें थे।
सुलह समझौते में दोनों पक्षों के मध्य आपसी क्लेश, मतभेद एवं दुर्भावना समाप्त हो जाती थी। लोक कल्याण के भावना से ओत-प्रोत उसी स्वरूप को उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालय द्वारा विस्तार रूप देते हुए एक स्थल, एक मंच पर बहुत सारे वादों को सुलह-समझौता के आधार पर समाप्त कराने के उद्देश्य से राष्ट्रीय लोक अदालत आयोजित कराने के निर्देश दिये जाते हैं, जिसमें दोनों पक्षों के हित के साथ सामाजिक प्रेम भावना भी समाहित है। उन्होंने आगे कहा कि लोग मिल-जुल कर प्रेम भावना से रहे, जो समाज एवं राष्ट्र के हित में है। यदि आपसी मतभेद पनपते भी हैं, तो उसे शांत एवं सद्भाव के साथ समाप्त करने का प्रथम प्रयास दोनों पक्षों द्वारा किया जाना चाहिए। यदि प्रथम प्रयास में दोनों पक्ष सफल नहीं होते है तभी उन्हें न्यायालय के शरण जाना चाहिए। उन्होंने आगे बताया कि जनपद न्यायालय परिसर के अतिरिक्त क्लेक्ट्रेट एवं सभी तहसीलों में आपसी सुलह-समझौता के आधार पर वादों का निस्तारण कराया जाएगा।
इस अवसर पर सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण अनिल कुमार वर्मा ने कहा कि लोक अदालत के आयोजन में आने वाले दोनों पक्षों के बैठने, शुद्ध पेयजल आदि की समुचित व्यवस्था करायी गई है। लोक अदालत में आने वाले सभी व्यक्ति के सुविधा का ख्याल रखा गया है और यह प्रयास किया जा रहा है कि आज इस वृहद लोक अदालत में अधिक से अधिक वादों को आपसी सुलह-समझौता के माध्यम से समाप्त कराकर लोगों को राष्ट्रीय लोक अदालत के उद्देश्य का लाभ दिलाया जा सके। उन्होंनें आगे बताया की धारा 138 पराक्राम्य लिखत अधिनियम (एन.आई.ऐक्ट), बैंक वसूली वाद, श्रम विवाद वाद, विद्युत एवं जलवाद बिल, (अशमनीय वादों को छोड़कर) अन्य आपराधिक शमनीय वाद, पारिवारिक एंव अन्य व्यवहार वाद, पारिवारिक विवाद, भूमि अधिग्रहण वाद, सर्विस मैटर से संबन्धित वेतन, भत्ता और सेवानिवृत्ति लाभ के मामले, राजस्व वाद, जो जनपद न्यायालय में लम्बित हों, अन्य सिविल वाद आदि निस्तारित किये गये।
नूरी अन्सार, अपर जिला जज/नोडल अधिकारी, राष्ट्रीय लोक अदालत, एवं अनिल कुमार वर्मा सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के अनुसार राष्ट्रीय लोक अदालत में कुल 54908 वादों को निस्तारित किया गया एवं कुल समझौता राशि मु. 188782042 रूपये है। जिसमें पीठासीन अधिकारी (वर्चुअल कोर्ट) प्रत्युश आनंद मिश्रा द्वारा 15,500 वादों का निस्तारण किया गया, जो कि अत्यंत सराहनीय है। शेषमणि न्यायाधीश मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण द्वारा कुल 120 केस निस्तारण हेतु नियत थे, जिसमें से कुल 78 वाद निस्तारित किये गये, जिस पर कुल 56430841 रूपये की धनराशि क्षतिपूर्ति निर्धारित की गयी। बैंक रिकवरी से संबन्धित 1381 प्री-लिटिगेशन वाद निस्तारित किये गये तथा बैंक संबन्धित ऋण मु0- 95575700 रू0 का सेटेलमेंट किया गया, जो विगत लोक अदालत की तुलना में अधिक है। यह एल0डी0एम0 गणेश सिंह यादव द्वारा उठाया गया सराहनीय कदम है।
पारिवारिक विवाद से सम्बन्धित 89 मुकदमों को निस्तारित किया गया है, जिसमें कई पुराने वाद निस्तारित किये गये। संबंधित मजिस्ट्रेट न्यायालयों द्वारा 11907 वाद निस्तारित किया गया, जिसके एवज में कुल मु 222900 रूपये अर्थदण्ड अध्यारोपित किया गया। जिसमें मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा 2775 वाद अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम द्वारा 2016 वादों का निस्तारण किया गया एवं सिविल न्यायालय द्वारा कुल 127 मामलों का निस्तारण किया गया, जो विगत लोक अदालत की तुलना में अधिक वाद निस्तारित किया गया है। राजस्व मामलों से संबन्धित 25771 वाद विभिन्न राजस्व न्यायालय द्वारा निस्तारित किये गये।