साहित्येन्दु डाॅ. सुशील कुमार पाण्डेय की पुस्तक ‘अभिज्ञान शाकुंतलम् एवं कामायनी का तुलनात्मक संदर्भ’ का हुआ लोकार्पण

अयोध्या। डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय के संत कबीर सभागार में हिंदी के मूर्धन्य विद्वानों का समागम हुआ। कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित की अध्यक्षता में डॉ. सुशील कुमार पांडे की पुस्तक ‘अभिज्ञान शाकुंतलम् एवं कामायनी का तुलनात्मक संदर्भ’ का लोकार्पण किया गया।
लोकार्पण समारोह को संबोधित करते हुए कुलपति प्रो. मनोज दीक्षित ने कहा की साहित्य के माध्यम से इतिहास लेखन करना होगा और यह साहित्यकारों के लिए एक नई चुनौती है कि कथानक, ग्रंथों, पुराणों में छिपे हमारे इतिहास को सामने लाएं, अक्सर यह होता है कि जो दिखता है वह होता नहीं. लोकार्पित पुस्तक के संदर्भ में कुलपति ने कहा कि अलग-अलग समय खंड में लिखे गए महाकाव्यों की तुलना करना साहसिक कार्य है और साहित्येन्दु डॉ. सुशील कुमार पांडे बधाई के पात्र हैं। कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित ने कहा कि आर्कियोलॉजी पर लिखा गया इतिहास हमें मान्य नहीं है। डॉ. लोहिया के जीवन चरित्र और लेखन को उद्धृत करते हुए आचार्य मनोज दीक्षित ने कहा कि डॉ. लोहिया का लिखा गया हर शब्द अपने आप में महत्वपूर्ण है और उसके संदर्भों को खोजा जाना जरूरी है।
मुख्य अतिथि लोक भूषण डॉ. आद्या प्रसाद सिंह प्रदीप ने हिंदी के उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए लेखक को इस कार्य के लिए शुभाशीष दिया. साहित्य भूषण देवी सहाय पांडे दीप ने कहा कालिदास और प्रसाद दोनों प्रेम के कवि हैं, रुप और सौन्दर्य के कुशल चितेरे हैं. आहत प्रेम की आहों से दोनों का काव्य भरा हुआ है इनकी तुलना करना अपने आप में एक दुरूह कार्य है.
साहित्य भूषण विजय रंजन ने कहा कि डॉ. पांडे भारतीय संस्कृत से प्रभावित हैं और उनके नायकों का वर्णन करना चाहते हैं. कामायनी चेतना के विकास का ग्रंथ है। गौरी शंकर पांडे अरविन्द ने कहा कि दोनों काव्य अविस्मरणीय हैं कालिदास संस्कृत तो प्रसाद हिंदी के शिखर पुरुष हैं. कामायनी दर्शन प्रधान काव्य है, चेतना का प्रधान और सूक्ष्म विश्लेषण है. देवनारायण शर्मा चक्रधर ने कहा कि प्रेम नहीं है तो जीवन नहीं. आशु कवि मथुरा प्रसाद सिंह ने हिंदी के लिए किए जा रहे कार्यों हेतु कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित को धन्यवाद दिया।
पुस्तक लेखक डॉ सुशील कुमार पांडे ने अवध विश्वविद्यालय के कुलगीत में रघुवंश शब्द के इस्तेमाल को अपने इस लेख का आधार बताते हुए कहा कि डॉक्टर शंभूनाथ सिंह जी एक महान कवि थे और उनसे प्रेरित होकर यह पुस्तक समर्पित है। कार्यपरिषद सदस्य ओम प्रकाश सिंह ने कहा कि हिंदी के क्षेत्र में अब जिम्मेदारी नौजवानों की है बुजुर्ग पीढ़ी ने अपना काम बखूबी किया है. कार्यक्रम का संचालन अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर डॉ विनोद कुमार श्रीवास्तव ने किया।