-मोहम्मद शफी उल्लाह नायब तहसीलदार से मूल पद लेखपाल पर हुआ वापस
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अयोध्या। एक कहावत है कि सरकार और साहबान के खेल निराले होते हैं। साहब और सरकार सर्वशक्तिमान है। जो चाहे, जैसा चाहे, वैसा करें। कहने को तो ऊपर से नीचे तक अधिकारियों की लंबी फौज नियम कायदों और कार्यवाही पर निगाह रखती है,लेकिन अगर किसी की पहुंच है और वह कलयुगी उपहार ’वजन’ का बेहतर इस्तेमाल करने की क्षमता रखता है तो उसके लिए नियम कायदे बेमानी हो जाते हैं। ऐसा ही एक मामला मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम की नगरी अयोध्या में प्रकाश में आया है। श्री सरयू नगर विकास समिति अयोध्या की शिकायत पर एक शख्स सरकारी आदेश और नियमों कानूनों को दरकिनार कर साहब बन गया और 27 वर्षों तक साहबगीरी करता रहा। कारस्तानी देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सेंट्रल ब्यूरो इन्वेस्टीगेशन की निगाह में आने और आरोपी बनाए जाने के बावजूद फर्जी साहिबी नहीं छिनी। फिलहाल प्रदेश की योगी सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट राम नगरी में विश्व की सबसे ऊंची विशालकाय राम की प्रतिमा के लिए शुरुआती जमीन अधिग्रहण की कवायद में निशाने पर आए इस शख्स को अब रिटायरमेंट के एक साल पूर्व मूल पद पर वापस किया गया है। प्रकरण जनपद अयोध्या में स्थानापन्न सर्वे नायब तहसीलदार के पद पर तैनात रहे मोहम्मद शफी उल्लाह का है। मोहम्मद सफी उल्लाह की सरकारी सेवक के रूप में तैनाती सर्वे लेखपाल के पद पर हुई थी। बाद में उसको मुख्यमंत्री योगी के गृह जनपद गोरखपुर में तैनाती के दौरान तत्कालीन जिलाधिकारी की ओर से नियम कायदों को दरकिनार कर स्थाई व्यवस्था के तहत सर्वे कानूनगो के पद पर प्रोन्नति दे दी गई और पदभार भी सौंप दिया गया। इसी प्रोन्नति को आधार बनाकर उसने वर्ष 1997 में स्थानापन्न सर्वे नायब तहसीलदार के पद पर प्रमोशन हासिल कर लिया।
कीमती जमीनों को हथियाने के खेल में मिली नियम विरुद्ध प्रोन्नति
बताया जाता है कि पूर्वांचल की आर्थिक राजधानी गोरखपुर में कीमती जमीन को हथियाने और करोड़ों का वारा न्यारा करने के खेल में मोहम्मद सफी उल्लाह को गोरखपुर के तत्कालीन जिलाधिकारी ने 28 मई 1993 के आदेश से स्थानीय व्यवस्था में स्थानापन्न सर्वे कानूनगो के पद पर प्रोन्नत कर पदभार सौंप दिया। आदेश में लिखा कि यह नियुक्ति पूर्णतः अल्पकालिक है और बिना पूर्व सूचना के निरस्त की जा सकती है। बावजूद इसके वर्ष 1997 में बिना नियमित सर्वे कानूनगो नियुक्त हुए शफी उल्लाह को वर्ष 1997 में स्थानापन्न सर्वे नायब तहसीलदार के पद पर प्रोन्नत कर दिया गया। जबकि उत्तर प्रदेश लोक सेवा (अस्थाई एवं स्थानापन्न नियुक्तियों के संबंध में उपबंधों का विखंडन) नियमावली 1991 के तहत 8 नवंबर 1991 से ही किसी को अस्थाई,स्थानापन्न, प्रोन्नतियां व नियुक्तियां करने का अधिकार नहीं था। आदेश में यह भी साफ किया गया था कि ऐसे सभी आदेश निष्प्रभावी माने जाएंगे। नियम विरुद्ध प्रमोशन लेकर साहब बने सफीउल्लाह ने गोरखपुर में जमीनों को लेकर बड़ा खेल किया। जनपद के बहरामपुर गांव की तमाम कीमती जमीनों को लेकर अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर विधि विरुद्ध आदेश पारित किया। इतना ही नहीं खतौनी में तमाम कूट रचित प्रविष्टियां की गई। मामला चर्चा में आया तो प्रकरण की जांच कराई गई और अभी भी मामला सीबीआई की अदालत में विचाराधीन है।
श्रीराम प्रतिमा भूमि अधिग्रहण विवाद में गिरा विकेट
प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ओर से राम नगरी में श्री राम की भव्य एवं विशाल काय प्रतिमा लगाने की घोषणा की गई तो जिला प्रशासन ने प्रतिमा की स्थापना और पार्क निर्माण के लिए अधिग्रहण के लिए जमीन की तलाश शुरू की। सर्वे नायब तहसीलदार के रूप में सफीउल्लाह ने अपने अधिकार क्षेत्र के मीरापुर द्वाबा और आसपास की जमीनों का ब्यौरा जिला प्रशासन को दिया। मुख्यमंत्री समेत शासन के आला अधिकारियों ने क्षेत्र का स्थलीय दौरा किया हालांकि यहां अधिग्रहण की कवायद विवाद की भेंट चढ़ गई। इसी के बाद सर्वे नायब तहसीलदार जिला प्रशासन के निशाने पर आ गए। बाईपास किनारे प्रतिमा की स्थापना के लिए दूसरी जमीन चिन्हित हुए तो वहां का चार्ज दूसरे को दे दिया। कार्यकाल की पत्रावली तलाश कराई तो पेंडिंग जांच सामने आ गई। नियम कानून की कसौटी पर कसने के बाद 27 साल साहब बने रहे सफीउल्लाह को सर्वे लेखपाल के पद पर वापस कर दिया गया।
सात बिंदुओं पर देना था जवाब, नहीं हुए संतुष्ट
-जांच पत्रावली के अवलोकन के बाद जिलाधिकारी ने कार्रवाई की तो सर्वे नायब तहसीलदार रहे मोहम्मद सफी उल्लाह ने उच्च न्यायालय की शरण ले ली। हाई कोर्ट ने बिना नोटिस और पक्ष सुने एकतरफा कार्रवाई का हवाला देकर आदेश को निरस्त कर दिया। इसके बाद जिलाधिकारी ने 24 अगस्त को नोटिस जारी कर 7 बिंदुओं पर एक सप्ताह में जवाब मांगा। एक पखवाड़े बाद सफीउल्लाह ने नोटिस का जवाब। अपने जवाब में उन्होंने विभाग में तमाम पदों के खाली होने, इन पदों पर बरसों से नियमित नियुक्तियां न होने तथा कई अन्य लोगों की ओर से भी स्थानापन्न पदों का पदभार वहन किए जाने का हवाला दिया। इतना ही नहीं सफीउल्लाह ने एक साल से भी कम समय 30 जुलाई 2021 को सेवानिवृत्त आयु पूरी होने का हवाला देकर कार्रवाई न करने का अनुरोध किया। हालांकि जिलाधिकारी जवाब से संतुष्ट नहीं हुए। जिलाधिकारी अनुज कुमार झा ने बताया कि प्रोन्नति उत्तर प्रदेश लोक सेवा नियमावली 1991 को दरकिनार कर की गई। यह पूरी तरह से आविधिक और निष्प्रभावी है। मोहम्मद सफी उल्लाह को अपने मूल पद सर्वे लेखपाल के पद पर प्रभार ग्रहण करने का आदेश जारी किया गया है। उक्त कार्यवाही पर श्री सरयू नगर विकास समिति के अध्यक्ष अवधेश सिंह ने मुख्यमंत्री तथा शासन प्रशासन का आभार व्यक्त किया है।
(पी. कुमार)