तन की सेहत पर राज है मन का।
ब्रेक,हार्ट एक, हैवी हार्टेड तथा हिन्दी के शब्द जैसे दिल टूटना, दिल बैठना आदि हमारे मनों भावों के प्रति शरीरकी संवेदनशीलता को व्यक्त करता है। 300 वर्ष पूर्व विलयम हार्वे के अनुसार मन के प्रत्येक भाव पीड़ा, तनाव, सुख, आनन्द, भय,क्रोध, चिंता, द्वन्द व कुंठा आदि का सीधा प्रभाव हमारे शरीर पर पड़ता है।इस दुष्प्रभाव को साइकोसोमैटिक डिसऑर्डर या मनोशारीरिक रुग्णता कहा जाता है ।
बचाव व उपचार :
डॉ मनदर्शन के अनुसार साइकोसोमैटिक डिसर्डर से बचाव व सम्यक उपचार के लिए लोगो मे मनोस्वस्थ्य के प्रति जागरूक होना पड़ेगा और अपने चिकित्सक से किसी भी प्रकार के मनोतनाव व अवसाद की मनोदशा से निःसंकोच अवगत कराएं । दैनिक क्रिया-कलाप से उत्पन्न दबाव व तनाव को अपने मन पर हाबी न होने दें। मनोरंजक गतिविधियों तथा मन को शुकून व शांति प्रदान करने वाले ध्यान व विश्राम को प्राथमिकता दें। आठ घन्टे की गहरी नींद अवश्य लें। काग्निटिव-बिहैवियर मनोज्ञान के माध्यम से मन पर तनाव के हाबी होने से काफी हद तक बचा जा सकता है तथा आनन्दित व शांत मनोदशा के सकारात्मक मनोंप्रभाव से शरीर की सेहत भी संवारी जा सकती है।
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